मुश्किल है
वोउसके इंतजार में
टकटकी लगाएटिकी है दीवार से
जोचला गया अचानक
रोती यशोधरा-सी छोड़कर
है फिर वही कहानी
आंचल में दूध, आंखों में पानी
परअबकी नहीं आसार दुर्भाग्य के
सौभाग्य में बदल जाने की
निकले हुए सिद्धार्थ के
गौतम बन जाने की
त्याज्य यशोधरा से भिक्षा-धन पाने की
तथागत की भार्या होने या
इतिहास दोहराने की
कोई कह दे उसे नहीं आएगा वो
कोई पीपल की छांव
नहीं पाएगा वो
मुमकिन हैउसे निला होगा
सहारा नक्सलवाद का
मिली होगी बंदूक या
साथ आतंकवाद का
लेकिन नामुमकीन है उसका
इस हवा से बच पाना
चलती गोलियों का कहीं
बन गया होगा निशाना
फैला है जहां चारों तरफ
तिलिस्मी जंजाल
जमीं के नीचे से जहां
मिलते हैं नर-कंकाल
यही विडम्बना है आज
उसका घर लौट आना
मुश्किल है
सिद्धार्थ का गौतम बन जाना
मुश्किल है !
----'vagarth'(november) men prakashit-------------------------------------------------
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2 comments:
मैंने कविता करना छोड़ दिया था... 'काश' में आपकी यह कविता पढ़ कर प्रेरणा सी मिली फिर से लिखने की... बहुत बहुत धन्यवाद
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